सावरकर गाथा

राष्ट्रीय किर्तनकार गोविंदस्वामी आफळे

१ अ. श्रोतृ आराधन सागर परि अति अथांग जीवन | कसे करू हो मी अवगाहन | हिमगिरि परि उत्तुंग व्यक्ति धन | कसे करू हो मी आरोहण ||धृ|| सर्व व्यापी नील गगनसम | ज्वलंत सूर्य श्रीनारायण | कशि घालू गगनास गवसणी | गरूड न मारूति मी तर उडुगण ||१|| स्वातंञ्याचें भारतसंगर | रामायण घडवी सावरकर | मी न वाल्मिकी देव स्फूर्तिचा | व्यास नसे मी बादरायण ||२|| उदंड कीर्ती उदात मूर्ती | स्फूर्ति दावू त्या मंगल आरती | चंद्रसूर्य मी नसे दीप्तिमान | नंदादीपातिल मी निरांजन ||३|| सुगंध नाही सुरम्य नाही | काव्य सुमन परि अर्पित पायी | भक्ति सुधेची एक शक्ति मम | गोड करा! भगवन् श्रोतेगण ||४|| स्वातंञ्यलक्ष्मी की जय…
(संकलन’- श्री. हर्षल मिलिंद देव, नालासोपारा, पालघर)]]>

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